दर्शनीय स्थल

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बिलाड़ा के दर्शनीय स्थल हैं -

1. आई माता जी का मंदिर (वह स्थान जहाँ अखंड ज्योति से केसर झरता हैं)


2. कल्पवृक्ष तीर्थ (एक पवित्र वृक्ष जो मनोकामनाएं पूर्ण करता हैं)


3. बाणगंगा तीर्थ (पुरातन काल के प्रमाण लिए एक पवित्र तीर्थ)


4. हर्षा देवल (1000 वर्ष पुराना शिव मंदिर)


5. बलि राजा का मंदिर (वह स्थान जहाँ साक्षात भगवान् विष्णु आये थे)


6. जैन दादावाडी (एक प्रसिद्ध जैन तीर्थ)


7. कापरडा जी तीर्थ (एक चमत्कारिक मंदिर)


8. डीगड़ी माता का मंदिर (प्राकृतिक गुफा में स्थित मंदिर)



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1. आई माता जी का मंदिर (वह स्थान जहाँ अखंड ज्योति से केसर झरता हैं)
आई माताजी का मंदिर

यह नवदुर्गा अवतार श्री आई माता जी का मंदिर हैं। यह पश्चिमी राजस्थान एक का सुप्रसिद्ध मंदिर है जहाँ पूरे भारत से लोग दर्शनों के लिए आते हैं। बिलाड़ा स्थित यही वो मंदिर है जहाँ विश्व  का अनोखा एवं अद्वितीय चमत्कार "अखंड केसर ज्योत" है।  वैसे तो इस मंदिर का एक-एक भाग दर्शनीय है, फिर भी समझने की दृष्टि से विवरण प्रस्तुत है-
अखंड केसर ज्योत- यह "अखंड केसर ज्योत" पिछले 500 से भी अधिक वर्षों से लगातार जल रही है और इसकी लौ से काजल के स्थान पर केसर प्रकट होता है जो कि मंदिर में माताजी की उपस्थिति का अकाट्य प्रमाण है।
आई माता जी की झोपड़ी- मंदिर परिसर के प्रथम तल पर आई माताजी की झोपड़ी को संरक्षित किया गया है। यह वही झोपड़ी है जहाँ आई माताजी निवास करते थे।
चित्र प्रदर्शनी- मंदिर के एक भाग में आई माताजी के संपूर्ण जीवन चरित्र को दर्शाने वाली भव्य प्रदर्शनी है। यहाँ आई माताजी के जीवन वृत्त एवं विभिन्न घटनाओं को अनेक चित्रों के माध्यम से समझाया गया हैं। प्रदर्शनी के अंतिम छोर पर परम भक्त दीवान रोहितदास की धूणी है जहाँ वे तपस्या करते थे। 
संग्रहालय(म्यूजियम)- मंदिर परिसर के एक भाग में विशाल एवं भव्य संग्रहालय है। यहाँ सैंकडों साल पुरानी अनेकों अनेक वस्तुएं, बर्तन, वाद्य यन्त्र, पुराने दस्तावेज़, फर्नीचर , धातु की मूर्तियाँ, कलाकृतियाँ, पुरानी तकनीकी वस्तुएं आदि संरक्षित हैं। इसी म्यूजियम में अनेक प्रकार के हथियार, जैसे तलवारें, कटार, भाले, ढाल आदि भी संरक्षित किये गए हैं। वर्तमान दीवान माधोसिंह जी के द्वारा करवाए गए इस संरक्षण को देखकर निश्चित रूप से आप कह उठेंगे- आश्चर्यजनक! अदभुत!! अतुल्य!!!
रावटी झरोखा- यह झरोखा मंदिर परिसर के द्वार के पास ऊपर बना हुआ है। यह पत्थर पर नक्काशी का सुन्दर उदाहरण है। इस झरोखे के अन्दर की तरफ कांच की अत्यंत सुन्दर कारीगरी की गयी है। बेजोड़ स्थापत्य कला युक्त यह झरोखा बरबस ही सबका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करता है।
वाड़ी महल-यह महल दीवान साहब का निवास स्थान है। इसका निर्माण लगभग 300 वर्षों पहले हुआ था। इस महल की बनावट भी बेजोड़ है। 

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2. कल्पवृक्ष तीर्थ (एक पवित्र वृक्ष जो मनोकामनाएं पूर्ण करता हैं)

कल्पवृक्ष तीर्थ 

बिलाड़ा स्थित यह पवित्र वृक्ष "कल्पतरु" एवं "देवतरु" के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि यह पेड़ असुर राजा बलि के समय स्वर्ग से लाया गया था। तब से लेकर आज तक हज़ारों सदियाँ बीत चुकी हैं परन्तु यह चमत्कारिक पेड़ उसी प्रकार स्थित है। यह चमत्कारिक पेड़ सबकी मनोकामनाएं पूरी करता है। यहाँ मुख्य मंदिर भगवान शिव का है। लगभग 8-9 फीट चौड़े तने वाले इस अद्भुत पेड़ की विशेषता है कि इसमें वर्ष में केवल एक बार, श्रावण (सावन) के महीने में पत्ते आते हैं। बाकी पूरे 11 महीने पेड़ लगभग सूखा ही रहता है। इस पेड़ की एक अन्य विशेषता है कि इसके तने पर कई देवी-देवताओं के प्राकृतिक रूप से उभरे हुए चित्र दिखाई देते हैं। श्रावण (सावन) महीने के प्रत्येक सोमवार को इस तीर्थ पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं एवं भगवान् शिव की पूजा करते हैं।

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3. बाणगंगा तीर्थ (पुरातन काल के प्रमाण लिए एक पवित्र तीर्थ)
यह अत्यंत प्राचीन तीर्थ स्थल है। इसे "राजस्थान का दूसरा पुष्कर" कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस तीर्थ का विशेष एतिहासिक महत्व है। कहा जाता है कि एक बार असुर राजा बलि के राज्य में अकाल पड़ा। पानी के लिए त्राहि-त्राहि मच गयी। तब उस समय राजा बलि ने एक बाण जमीन पर चलाया जिससे जलधारा फूट पड़ी। तब इसे "बाणगंगा" नाम दिया गया था। तत्पश्चात यह धारा नदी के रूप में बहने लगी और कई गाँवों के लिए जलस्रोत बनी रही।
यहाँ के पवित्र कुण्ड(जलाशय), मंदिर आदि दर्शनीय हैं। इसी बाणगंगा तीर्थ पर कार्तिक मास की पूर्णिमा को महास्नान का आयोजन होता है और श्रद्धालु पवित्र कुण्ड में डुबकी लगाकर समस्त पापों से मुक्ति प्राप्त करते हैं। यहाँ पर स्थित लगभग एक हज़ार साल पुराना शिव मंदिर भी विशेष दर्शनीय है। इसकी वास्तुकला एवं स्थापत्य बेजोड़ है।


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4. हर्षा देवल (1000 वर्ष पुराना शिव मंदिर)
हर्षा देवल
यह भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर लगभग 1000 वर्ष पहले तत्कालीन बगड़ावत वंश के राजा द्वारा बनवाया गया था। कहा जाता है इस मंदिर के निर्माण में केवल पत्थरों का उपयोग किया गया है। अर्थात किसी भी तरह का चूना, सीमेंट या अन्य मिश्रण का उपयोग नहीं हुआ है। पत्थर पर पत्थर रखते हुए यह मंदिर बनाया गया है। बहुत सारे खम्भों वाले इस मंदिर की वास्तुकला अदभुत है एवं गर्भगृह के द्वार के पास पत्थरों की सुन्दर नक्काशी की हुई है। मंदिर के पास इसी के समकालीन एक बावड़ी भी है। 8 -9  वर्ष पहले तक इस बावड़ी में थोडा बहुत पानी होता था। परन्तु अब पुरातत्व विभाग की अनदेखी एवं प्रशासनिक उदासीनता के कारण यह ऐतिहासिक बावड़ी मात्र एक भग्नावशेष बनकर रह गयी है और अपने उस स्वर्णिम समय को याद करके खुद ही अपना अस्तित्व बचाने की कोशिश कर रही है।


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5. बलि राजा का मंदिर (वह स्थान जहाँ साक्षात भगवान् विष्णु आये थे)
यह मंदिर बिलाड़ा नगर से 4 किमी. दूर एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है। यहीं वह स्थान है जहा असुर राजा बलि ने अपना 100 वाँ यज्ञ किया। यहीं पर साक्षात् भगवान विष्णु वामन (बामन) अवतार के रूप में आये थे। राजा बलि द्वारा किये गए यज्ञ के अवशेष आज भी अपभ्रंश के रूप में यहाँ मौजूद है। मंदिर के गर्भगृह में मुख्य प्रतिमा के पास किसी गड्ढे को एक बड़े पत्थर से ढका हुआ प्रतीत होता है। कहा जाता है इसी जगह पर राजा बलि को पाताललोक भेजा गया था।

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6. जैन दादावाडी (एक प्रसिद्ध जैन तीर्थ)
इस दर्शनीय स्थल से संबंधित जानकारी अपलोड की जा रही हैं. शीघ्र ही आपके सम्मुख यहाँ उपलब्ध होगी।

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7. कापरडा जी तीर्थ (एक चमत्कारिक मंदिर)
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8. डीगड़ी माता का मंदिर (प्राकृतिक गुफा में स्थित मंदिर)
यह मंदिर बिलाड़ा नगर से 6 किमी. दूर पथरीले क्षेत्र के बीच पहाड़ी की एक प्राकृतिक गुफा में स्थित है। यह भी एक चमत्कारिक मंदिर है। यहाँ की गुफा में 5 अलग-अलग सुरंगें अलग-अलग दिशाओं में जाती हैं। गुफा का प्राकृतिक सौंदर्य अनूठा है। रात के समय यहाँ रुकना निषेध माना जाता है।

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© सर्वाधिकार सुरक्षित.  वेबसाइट निर्माण - बिलाड़ा टूरिज्म एवं पवित्रभूमि टीम

4 comments:

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  2. हर्षा देवल (1000 वर्ष पुराना शिव मंदिर)

    हर्षा देवल
    यह भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर लगभग 1000 वर्ष पहले तत्कालीन बगड़ावत वंश के राजा द्वारा बनवाया गया था। कहा जाता है इस मंदिर के निर्माण में केवल पत्थरों का उपयोग किया गया है। अर्थात किसी भी तरह का चूना, सीमेंट या अन्य मिश्रण का उपयोग नहीं हुआ है। पत्थर पर पत्थर रखते हुए यह मंदिर बनाया गया है। बहुत सारे खम्भों वाले इस मंदिर की वास्तुकला अदभुत है एवं गर्भगृह के द्वार के पास पत्थरों की सुन्दर नक्काशी की हुई है। मंदिर के पास इसी के समकालीन एक बावड़ी भी है। 8 -9 वर्ष पहले तक इस बावड़ी में थोडा बहुत पानी होता था। परन्तु अब पुरातत्व विभाग की अनदेखी एवं प्रशासनिक उदासीनता के कारण यह ऐतिहासिक बावड़ी मात्र एक भग्नावशेष बनकर रह गयी है और अपने उस स्वर्णिम समय को याद करके खुद ही अपना अस्तित्व बचाने की कोशिश कर रही है।
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    कृपया करके इसके बारे में मुझे थोड़ी और जानकारी देवे

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  3. ये हर्षा देवल राजा हर्ष ने अपने सैनिको के साथ मिलकर एक रात मै बनाया है इसके पास राजा हर्ष का छोटा सा गांव जो हर्ष नाम है ये लगभग1000 वर्ष पुर्व मै बनाया गया है यहा पर दुर दुर तक गुर्जर जाति का निशान तक भी नी है यहा कोई उनकी जमीन नी है ईसके आस पास जाट , पुरोहित, सीरवी ,पटेल ,देवासी व अन्य जाति के लोग खेती करते है

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  4. ये हर्षा देवल राजा हर्ष ने अपने सैनिको के साथ मिलकर एक रात मै बनाया है इसके पास राजा हर्ष का छोटा सा गांव जो हर्ष नाम है ये लगभग1000 वर्ष पुर्व मै बनाया गया है यहा पर दुर दुर तक गुर्जर जाति का निशान तक भी नी है यहा कोई उनकी जमीन नी है ईसके आस पास जाट , पुरोहित, सीरवी ,पटेल ,देवासी व अन्य जाति के लोग खेती करते है

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