1. नौ सती का मेला
| नौ सती मेले में उमड़े श्रद्धालु |
प्राचीन ग्रंथों एवं कथाओं के अनुसार भक्त प्रहलाद के पुत्र राजा विरोचन के दस रानियाँ थी। राजा विरोचन की मृत्यु के बाद उनके पीछे उनकी नौ रानियाँ सती हो गयी। उनमें से एक रानी को सती नहीं होने दिया गया क्योंकि उनके गर्भ में संतान थी। उस समय सती होने के बाद नगर के बाणगंगा तीर्थ पर उनकी याद में समाधी स्थल का निर्माण करवाया गया। नौ रानियों के सती होने के कारण ही इसे "नौ सती" का मेला कहा जाता है। उस समय से लेकर आज तक प्रतिवर्ष उन नौ सतियों की याद में बाणगंगा तीर्थ पर यह मेला भरता है।
किसी ज़माने में यह मेला मारवाड़ की शान हुआ करता था। परन्तु जानकारी, जागरूकता एवं प्रसिद्धि हेतु प्रशासनिक सहयोग एवं नवाचारों के अभाव में धीरे-धीरे यह मेला केवल बिलाड़ा एवं आस-पास के कुछ गांवों तक ही सिमट कर रह गया हैं।
2. बाणगंगा कार्तिक पूर्णिमा का मेला
यह मेला कार्तिक मास की पूर्णिमा को नगर के बाणगंगा तीर्थ स्थल पर ही भरता है। यह मेला समूचे मारवाड़ में "गंगा माई का मेला" नाम से विख्यात हैं। इस दिन प्रातः काल भारी संख्या में श्रद्धालु बाणगंगा के पवित्र कुण्ड में स्नान करके अपने समस्त पापों से मुक्ति प्राप्त करते हैं। ये परंपरा कई सदियों से चली आ रही हैं। इसी एतिहासिक महत्त्व के कारण बिलाड़ा को "दूसरा पुष्कर" भी कहा जाता है।
भारतीय पंचांग के वर्ष की चार बीजों (शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि या दूज) को आई माताजी की मुख्य बीज या बड़ी बीज माना जाता है। इन अवसरों पर भारत के कोने - कोने से आई माताजी के मंदिर (बढ़ेर) पर हजारों श्रद्धालु आते है और माताजी के दर्शन करके मन्नत मांगते हैं। ये चार बीज निम्न प्रकार से है-
चैत्र शुक्ल बीज (मार्च-अप्रैल महीने में)
बैसाख शुक्ल बीज (अप्रैल-मई महीने में)
भाद्रपद शुक्ल बीज (अगस्त-सितम्बर महीने में)
माघ शुक्ल बीज (दिसम्बर-जनवरी महीने में)
विस्तृत जानकारी के लिए कृपया प्रतीक्षा करें| वेब पेज निर्माणाधीन हैं|
© सर्वाधिकार सुरक्षित.
वेबसाइट निर्माण - बिलाड़ा टूरिज्म एवं पवित्रभूमि टीम